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KORBA:कागजों में हरियाली,पौधारोपण में करोड़ों का घपला,मात्र 20 फीसदी जीवित…!

0 कैम्पा मद से 2021 में रोपे हजारों पौधे जीवित नहीं रहे

0 265 हेक्टेयर सिंचित रोपणी में करीब 135 हेक्टेयर मिसिंग एरिया(इतनी जमीन मिली ही नहीं) से बड़ा सवाल

कोरबा। कोरबा जिले के जंगलों में पौधारोपण के नाम पर बड़ा खेल हुआ है। जंगल को सघन करने के लिए राज्य सरकार के द्वारा जो लक्ष्य दिए जाते हैं, उन लक्ष्य की पूर्ति की आड़ में हजारों-लाखों नहीं बल्कि करोड़ों रुपए की बंदरबांट हुई है। रोपण के बाद उसकी देखरेख, उसकी सिंचाई में गफलत हुई है। अधिकारियों और शासन को अंधेरे में रखकर जंगल में काम हुए हैं, जिसका खुलासा हुआ है।

इस तरह का मामला कटघोरा वन मंडल के पसान रेंज के अंतर्गत आने वाले जलके पिपरिया ऑरेंज वन क्षेत्र में सामने आया है जहां सिंचित रोपणी के नाम पर जितने पौधे रोप गए थे उनमें से मात्र 20 से 25% ही जीवित बचे हैं। ऐसे में सवाल लाजिमी है कि शासन की मंशा को किस तरह से पूरा किया जा रहा है? विभागीय अधिकारियों के साथ-साथ मैदानी अमला पूरी लीपापोती और कागजों में हरियाली दिखाने में जुटा है।

जो जानकारी विभागीय सूत्रों से मिली है, उसके मुताबिक पिपरिया पंचायत अंतर्गत वन भूमि पर वर्ष 2020-21 में 150 हेक्टेयर और 115 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचित रोपणी के तहत पौधा रोपण कराया गया लेकिन मैदानी अमले की अपेक्षित सक्रियता नहीं होने के कारण आलम यह है कि 265 एकड़ विशाल क्षेत्रफल में रोपे गए फलदार, छायादार और ईमारती महत्व के पौधों में से मात्र 20% ही जीवित रह पाए हैं। काला मुरुम मिट्टी वाली 150 हेक्टेयर भूमि पर करीब 88000 पौधों का रोपण 2021 में कराया गया जिनमें आंवला, जामुन, नीम, करंज, सागौन, सीरत, सरई, कौहा, महुआ बीजा आदि शामिल थे। इसी तरह 115 हेक्टेयर भूमि पर सीरत, सागौन व करंज के पौधे रोपे गए थे। आश्चर्य की बात यह है कि इन 3 वर्षों के भीतर 150 हेक्टेयर के पौधों में से मात्र 20 से 30% और 115 हेक्टेयर रोपणी में से मात्र 20 से 25% पौधे ही आज की स्थिति में जीवित बचे हैं। इतना ही नहीं, रोपे गए पौधों और योजना की जानकारी देने वाला कोई लेख भी यहां मौजूद नहीं है।

जंगल का विस्तार करने, पर्यावरण को संरक्षित करने के नाम पर शासन के द्वारा कैम्पा मद में जो राशि जारी की गई, उसका किस तरह से दुरुपयोग और बंदरबांट हुआ है, इसका यह एक बड़ा उदाहरण है। सूत्र बताते हैं कि जब इस मामले में विभागीय तौर पर पड़ताल की गई तो 150 हेक्टेयर में मात्र 90 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधारोपण पाया गया और 60 हेक्टेयर मिसिंग एरिया सामने आया है और 90 हेक्टेयर में जो पौधे रोपे गए उनमें भी 20 से 30% ही जीवित बचे हैं। इसी तरह से 115 हेक्टेयर क्षेत्रफल में से 75 हेक्टेयर मिसिंग एरिया निकाला है और 40 हेक्टेयर में जो पौधे रोपे गए, उनमें मात्र 20% ही जीवित पाए गए हैं। मिसिंग एरिया मतलब कि वो जमीन है ही नहीं।।आखिर ऐसा क्यों और कैसे हुआ, यह सवाल तो विभागीय जिम्मेदार अधिकारियों से बनता है। इनके कमाल की दास्तां अभी बाकी है जो आपको चौंका देगी।

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